पार्श्वनाथ कौन थे/

पार्श्वनाथ, जिन्हें भगवान पार्श्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है, तथा एक अन्य नाम पारसनाथ जिन थे, और वे जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे। भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व तीर्थंकर (22) :- नॉमिनाथ तथा अगले तीर्थंकर (24) महावीर स्वामी थे/ भगवान पार्श्वनाथ जी जन्म लगभग 877 ईसा पूर्व वाराणसी के भेलूपुर मे हुआ था और वे जैन धर्म के ऐतिहासिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व माने जाते हैं। पार्श्वनाथ का जीवन और उनकी शिक्षाएँ जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांतों को समझने में भूमिका निभाती हैं।

पार्श्वनाथ का जीवन

भगवान पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी (काशी) के भेलूपुर के एक राजघराने में हुआ था। उनके पिता का नाम इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन का पुत्र था, जो काशी के राजा थे, और उनकी माता का नाम रानी वामा देवी था। पार्श्वनाथ बचपन से ही बहुत ही संवेदनशील और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। उनका मन प्रारंभ से ही सांसारिक भोग-विलास और ऐश्वर्य से विमुख था। पापार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म की स्रुस्थाप किया जो इस प्रकार है : – (1)सत्य (2) अहिंसा (3) असतेय (4) अपरिग्रह, और वे सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने केवल 30 वर्ष की अवस्था में संन्यास-जीवन को स्वीकार और वे कठोर तपस्या में लीन हो गए।

भगवान पार्श्वनाथ के द्वारा दी गयी शिक्षा चार थी (1) हिंसा न करना , (2) सदा सत्य बोलना ,(3) चोरी न करना , (4) सम्पत्ति न रखना, , सत्य, (चोरी न करना), अपरिग्रह (अनासक्ति) और ब्रह्मचर्य (संयम) के पांच मुख्य सिद्धांतों का प्रचार किया। इन सिद्धांतों को बाद में जैन धर्म में ‘महाव्रत’ के रूप में स्वीकार किया गया। भगवान पार्श्वनाथ के जन्म कल्याण :- पूर्व पक्ष कृष्ण एकादशी को हुआ था, भगवान पार्श्वनाथ की दीक्षा की प्राप्ती :- बनारस मे हुआ था,तथा मोश्र की प्राप्ती श्रावण शुक्ला अष्टमी सम्मेद शिखर नामक स्थान पर हुआ था.

पार्श्वनाथ की शिक्षाएँ

पार्श्वनाथ की शिक्षाएँ जैन धर्म के मूल सिद्धांतों पर आधारित थीं, जिनमें मुख्य रूप से अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह को महत्व दिया गया है। पार्श्वनाथ का मानना था कि आत्मा को शुद्ध करने के लिए अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलना अत्यंत आवश्यक है। उनकी शिक्षाओं के अनुसार, प्रत्येक जीव में आत्मा होती है और इसलिए किसी भी जीव को कष्ट देना या उसकी हत्या करना अनैतिक है। उन्होंने अहिंसा को केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि मन और वचन में भी अहिंसा का पालन करने की शिक्षा दी।

उनकी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और संसार के बंधनों से मुक्त होने का था। पार्श्वनाथ का यह मानना था कि संसार में व्याप्त कष्टों और पीड़ाओं का मूल कारण मानव की वासनाएँ और इच्छाएँ हैं। इनसे मुक्त होकर ही आत्मा को शुद्ध किया जा सकता है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

जैन धर्म में पार्श्वनाथ की भूमिका

पार्श्वनाथ ने जैन धर्म को नई दिशा दी। वे महावीर स्वामी से पहले के तीर्थंकर थे, और उनकी शिक्षाओं का महावीर पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने जैन धर्म के अनुयायियों को तप, संयम और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उनकी तपस्या और साधना ने जैन धर्म के अनुयायियों को नैतिकता और संयम के सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा दी। पार्श्वनाथ ने अपने समय में जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया /

उनके द्वारा प्रतिपादित चार व्रत –(1) अहिंसा (2) , सत्य, (3) अस्तेय और (4) अपरिग्रह – ने जैन धर्म के सिद्धांतों को गहराई से प्रभावित किया। महावीर स्वामी ने इन चार व्रतों में ब्रह्मचर्य को जोड़ा और इसे महाव्रतों के रूप में स्थापित किया। इस प्रकार, पार्श्वनाथ का योगदान जैन धर्म के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में देखा जाता है।भगवान पार्श्वनाथ

पार्श्वनाथ के अनुयायी

पार्श्वनाथ के अनुयायियों में कई राजा, रानी और सामान्य लोग शामिल थे। उन्होंने अपने समय के समाज में अहिंसा और सत्य के महत्व को प्रमुखता से स्थापित किया। उनके उपदेशों के प्रभाव से जैन धर्म का विस्तार हुआ और विभिन्न वर्गों के लोग उनके सिद्धांतों से प्रभावित होकर जैन धर्म की ओर आकर्षित हुए।

पार्श्वनाथ के समय में जैन धर्म एक सशक्त धार्मिक आंदोलन के रूप में उभरा। उन्होंने जनता को नैतिकता, धार्मिकता और आत्मसंयम का पालन करने की प्रेरणा दी। उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं को अपनाकर मोक्ष की ओर अग्रसर होते रहे। पार्श्वनाथ का जीवन एक आदर्श जीवन का प्रतीक था, जिसे जैन धर्म के अनुयायी आज भी अनुसरण करते हैं।

पार्श्वनाथ की समाधि

भगवान पार्श्वनाथ ने 100 वर्ष की आयु में सम्मेद शिखर (अब झारखंड में स्थित) पर निर्वाण प्राप्त किया। सम्मेद शिखर जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है, जहां पर पार्श्वनाथ सहित कई तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया। यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है और वहां हर साल हजारों श्रद्धालु तीर्थयात्रा के लिए जाते हैं।

निष्कर्ष

भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर माने जाते हैं। उनकी शिक्षाएँ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों पर आधारित थीं, जो आज भी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शक हैं। उनके जीवन और शिक्षाओं ने न केवल जैन धर्म को समृद्ध किया, बल्कि समग्र मानवता को नैतिकता और शांति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। पार्श्वनाथ का जीवन त्याग, तपस्या और साधना का प्रतीक था, और वे सदैव जैन धर्म के आदर्श व्यक्तित्व के रूप में याद किए जाते रहेंगे/

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